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यहाँ होता है बसंत पंचमी से होली महोत्सव का आगाज
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यहाँ होता है बसंत पंचमी से होली महोत्सव का आगाज [News VMH] ब्रज क्षेत्र के अंतर्गत आगरा जनपद के बाह तहसील में यमुना के अंचल में यमुना नदी से लगभग 3 किलोमीटर, और भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म स्थली, बटेश्वर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ अपने वैभव को समेंटे हुए एक पुरातन गांव, जिसको समजवादी पार्टी ने “हेरिटेज विलेज” का दर्जा दिया, आज हम बात कर रहे हैं चतुर्वेदियों के गांव “होलीपुरा” की।
वैभवशाली इतिहास
इस गांव का वैभव कुछ ऐसा रहा कि आस पास के इलाके में इस गांव का नाम वैभवशाली गांव में सबसे पहले पायदान पर है, समय के साथ क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने इस क्षेत्र को वोट बैंक के कारण कोई भी रोजगार परक योजना लाकर नहीं दी, जिसके फलस्वरूप यह विकास की दौड़ में पिछड़ गया।
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बड़े स्तर पर हुआ पलायन
इस वैभवशाली गांव के अधिकांश लोग पलायन कर शहर की और चले गए, और पीछे छोड़ गए बीरान हवेलियां। वो हवेलियां जहाँ बच्चों की किलकारियां गूंजा करती थीं। आज ये बीरान पड़ी हवेलियां अपनी विलाषिता की गवाही देतीं हैं। कोई भी रोजगार न होने के कारण यहाँ के बाशिंदे, अपनी आलीशान हवेलियां छोड़कर, शहर के उन मकानों में विस्थापित हो गए, जितनी जगह में उनके बाथरूम हुआ करते थे।
विरासत को सहेजे हैं गांववासी
होलीपुरा में रहने वाले चंद लोगों ने अभी भी अपनी विरासत सम्हाल रखी है, आज भी होलीपुरा की वीरान पड़ी हवेलियां अपने वंशजों की प्रतीक्षा करती नजर आती हैं। इन वीरान पड़ी हवेलियों को देखने से ऐसा लगता है, मानो किसी ने खूबसूरत स्त्री से सभी श्रृंगार छीन लिए हों, इन हौलियों का श्रृंगार घर में रहने वाले बच्चे, बूढ़े और जवान हैं जिनसे ये हवेलियां गुलजार होती थीं, वो अब इन हवेलियों में नहीं रहते, कुछ लोग जो गांव को छोड़ चले गए.
उनके वंशजों ने अपनी इन्ही हवेलियों को बेचना भी आरम्भ कर दिया है, ये उनकी पैसे की आवश्यकता को तो शायद ही पूर्ण कर सकें लेकिन किसी और को एक विलाषिता पूर्ण जीवन अवश्य दे सकती हैं।
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बसंत पंचमी से प्रारम्भ होता है होलिकोत्सव
जिस गांव का नाम ही होलीपुरा हो वहां की होली कैसी होगी इसका वर्णन करना उतना सरल नहीं है। अगर आप इस उत्सव का आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको यहाँ की यात्रा करनी चाहिए। जिस प्रकार अपने मरने पर ही स्वर्ग के दर्शन प्राप्त हो सकते हैं, ठीक उसी प्रकार अगर आपको होलीपुरा की होली का आनंद लेना है तो वो तभी प्राप्त हो सकता है, जब आप यहाँ प्रत्यक्ष खड़े हों।
ठाकुर देवालय
वो ठाकुर जी का मंदिर जिसको “ठाकुर देवालय” के नाम से जाना जाता है, यही वह स्थान है जहाँ से बसंत पंचमी से होलिका उत्सव का शुभारम्भ होता है। ढोलक की थाप पर थिरकते लोग, सामूहिक होली गायन, मजीरे की झनकार, होली गायन में उपयोग की जाने वाले विभन्न राग, उनके ऊपर आधारित होने वाली होलियां, शायद इनका आनंद ही मुझे यह कहने पर मजूर करता है कि “अगर मुझे फिर से जन्म मिले तो इसी होलीपुरा के चतुर्वेदी कुल में मिले” जिस व्यक्ति ने इस गांव के स्नेह को समझा वही इस बात को कहने का अधिकारी है।
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जबतक में वृद्ध नहीं हो जाता और पराश्रित नहीं होता तबतक निर्बाध रूप से होलीपुरा आता रहूं ऐसी प्रार्थना प्रभु श्रीराम एवं माता सीता से करता हूँ, जब अशक्त हो जाऊंगा तो फिर मैं पराधीन हो जाऊँगा “पराधीन सपनेहु सुख नाही” तब की बात करना व्यर्थ है।
अगले लेख में होलीपुरा की कुछ और यादें साझा करूँगा।
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