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दोनों दारोगाओं पर गिरी गाज किए गए लाइन हाजिर
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दोनों दारोगाओं पर गिरी गाज किए गए लाइन हाजिर दरोगा जी तो दरोगा जी ठहरे वो वर्दी पहनते हैं उनको सौ खून माफ हैं, वो जिसको चाहें मारें, जिसकी चाहें बेज्जती करें, जिसको चाहें उसको उठाकर बन्द कर दें उनके लिए सब जायज है। वो सबसे बड़े अधिकारी हैं, साहब के सामने सभी बोने हैं। तभी तो इतना रुतवा है।
ये बातें आगरा पुलिस के लिए मामूली
जी हां ये सभी बातें आगरा पुलिस के लिए मामूली हैं, ये जो चाहें कर सकते हैं इनका कोई कुछ नहीं कर सकता। ये जब चाहें आम नागरिक की धज्जियां उड़ा सकते हैं, वर्दी वाले कभी जमीन पर कब्जा कराने के लिए पूरे परिवार को NDPS की धाराओं में जेल भेज सकते हैं, कभी भी कमीशन के लिए लड़ सकते हैं।
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लेकिन अब तो हद ही कर दी साहब केवल ढाबा मालिक के रायता न देने पर नाराज हो गए। ढाबा मालिक कितना निर्दयी होगा जिसने साहब के आने का इंतजार भी नहीं किया और सारा रायता बेच दिया। साहब की भृकुटि तन गई साहब ने खुद ही रायता फैला दिया। अब जो भी करना था पुलिस आयुक्त आगरा को करना था।
दोनों दारोगाओं को लाइन हाजिर कर दिया
पुलिस आयुक्त ने दोनों दारोगाओं को लाइन हाजिर कर दिया है। मानवता को शर्मसार करने वाले, सबके सामने लोगों को पीटना, सार्वजनिक जगहों पर उत्पात मचाना इसकी केवल यही सजा तो होती है। अगर आम नागरिक यही कार्य करता तो उसको भी क्या यही दंड मिलता है, अगर हाँ तब संतोष है, अगर नहीं तो केवल जनता को यह कह कर बहलाना कि ऐसा कृत्य करने वाले को लाइन हाजिर कर दिया है, केवल उच्चाधिकारियों का जनता से छलावा है।
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वर्दी पहनकर सड़कों पर उत्पात मचाने वाले
वर्दी पहनकर सड़कों पर उत्पात मचाने वाले क्या किसी खास कानून के तहत आते हैं ? भारतीय न्याय संहिता के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक को न्याय देने के लिए कृतसंकल्पित है, जहां देश मे एक ओर यूनिफार्म सिविल कोड को लागू करने की जद्दोजहद चालू है वहां इन उत्पात मचाते वर्दी वालों को किस कानून के तहत केवल लाइन हाजिर कर इतिश्री कर ली जाती है। इनको भी उसी कानून के तहत सजा दी जानी चाहिए जिसके तहत आम नागरिकों को दी जाती।
एक नकलची पुलिस भर्ती के दौरान पकड़ा गया