तुम तबतक चलते रहोगे जबतक लक्ष को न पा जाओ
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तुम तबतक चलते रहोगे जबतक लक्ष को न पा जाओ
तुम तबतक चलते रहोगे जबतक लक्ष को न पा जाओ हरदोई। जनपद के गोसवा गांव में आयोजित सत्संग कार्यक्रम में आध्यात्मिक गुरु देवेंद्र भैया जी ने कहा संत जो हमें सिखाना चाहता है ।वो बाहरी चीज़ो के जुड़ाव से नहीं मिल सकता। हमारे जीवनकाल में प्रभु से जुड़ाव हो जाए तभी जीवन की सार्थकता है। हमें जीवन में कुछ ऐसे काम करने चाहिए जिससे हमारा जीवन सार्थकता की ओर बढ़े।
समय का महत्व
समय की महत्ता और समय रहते जीवन में सिद्धता प्राप्त करने का यह मार्ग आध्यात्मिक गुरु देवेंद्र मोहन भैयाजी ने संगत को बताया। हरदोई के गोसवा, मल्लावां स्थित दिव्य कृपाल महाविद्यालय में देवेंद्र मोहन भैयाजी के सानिध्य में भव्य सत्संग एवं भंडारे का आयोजन किया गया।
भैया जी ने दिए प्रवचन
मिश्रिख से लोकसभा सांसद अशोक रावत के सत्संग में बड़ी संख्या में पहुंची संगत को आशीर्वचन देते हए भैयाजी ने कहा कि हमारे जीवन की शुरुआत गुरुज्ञान से होती है। गुरु हमें क्या सिखाना चाहता है और हम उसकी बातों का किस प्रकार, कितना अनुसरण कर रहे हैं इसी से जीवन की सार्थकता है। मनुष्य का शरीर और मन ही उसके आत्मिक विकास का सबसे बड़ा साधन हैं। अगर हमारा मन बाहरी मोहमाया में फंसा रहेगा तो गुरुज्ञान की अनुभूति नहीं होगी। हमारी मनगति पर नियंत्रण जरुरी है।
अन्य गुरुओं ने भी दिए उपदेश
आध्यात्मिक गुरु देवेंद्र मोहन जी ने कहा कि आज कम उम्र में लोगों के साथ अनहोनी घटनाएं हो रही हैं। लोग समझते हैं कि जीवन में हमारे पास बहुत समय है परंतु परमात्मा का दिया हुआ समय निश्चित है। समय की गणना करने में प्रभु का तरीका अलग है और हमारा अलग, इसलिए जरुरी है कि हम समय को बर्बाद ना करें। हमारे जीवन की सार्थकता तब होगी जब हम अभी से चलना शुरु कर दें। स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा है कि तुम्हारा जीवन तब शुरु होगा जब तुम आंख खोलोगे, तुम जागोगे और तब तक चलते रहोगे जब तक लक्ष्य तुम्हारे कदमों में ना आ जाए।
गुरु पर हो भरोसा
हमें गुरु पर उसी प्रकार भरोसा होना चाहिए जैसे किसी तीन-चार साल के बच्चे को अपनी मां पर होता है। बच्चे को यकीन होता है कि उसकी मां दुनिया की हर परेशानी से उसे बचा लेगी। बच्चा अपनी मां से कभी नहीं पूछता कि उसकी रक्षा के लिए उसकी मां योग्य है या नहीं।
मन पर करे नियत्रण
मनगति का आकलन हम एकांत में कर सकते हैं। यदि मन इधर उधर भागता है तो मन पर काम करने की आवश्यकता होती है। मन को सिखाना पड़ता है कि गुरु और गुरु की शिक्षाओं पर भरोसा किया जाए। धारणा से ही विश्वास बनता है। विश्वास धीरे धीरे अभ्यास से बनता है। गुरु के बताए नियम, गुरु का ध्यान धीरे धीरे जीवन का आधार बनाते हैं। मन को गुरु पर विश्वास और उसकी की आज्ञा से जोड़ना आवश्यक है।
खुद को करें गुरु को समर्पित
अगर प्रतिदिन हम सुबह उठ कर खुद को गुरु को समर्पित कर देंगें तो हमारा ख्याल रखना गुरु का दायित्व होगा। हमारा शरीर गुरु की बताई बातों का पालन करने का माध्यम है। इसलिए शरीर का स्वस्थ रहना भी आवश्यक है। हमारा आहार और विचार ही शरीर को साधना के योग्य बनाते हैं। अगर हम भोजन को औषधि की तरह लेंगें तो हमारा शरीर स्वस्थ रहेगा अन्यथा औषधि ही हमारा आहार हो जाएगी। इसी प्रकार हमें दूसरों की बुराई, चुगली आदि से अपने मन को बचाना जरुरी है। बाहरी चीजों पर हमारा ध्यान जितना कम होगा हमारा मन और शरीर भी उतना स्वस्थ होगा।
गुरु देते है शिक्षा
गुरु हमें बहुत प्यार से शिक्षाएं देता है। हमारा भी दायित्व है कि हम गुरु की बातों का प्यार से अनुसरण करें अन्यथा जब जीवन में कष्ट आते हैं तब भी हमें गुरु की शिक्षाओं का ही पालन करना पड़ता है। सत्संग एवं भंडारे का आयोजन पूर्णेंद्र वर्मा, आनंद प्रकाश और राम प्रताप सिंह की ओर से किया गया।
संगत का किया आभार
कार्यक्रम के संयोजक मास्टर अनिल वर्मा और पूर्णेंद्र वर्मा ने हरदोई समेत आसपास के जनपदों से पधारी संगत का आभार व्यक्त किया। देवेंद्र मोहन भैयाजी को सुनने के लिए मिश्रिख से लोकसभा सांसद अशोक रावत भी पहुंचे। इस मौके पर दिव्यानंद योग साधना समिति के पदाधिकारियों को सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम में गेंदन लाल बाबूजी भी विशेष रुप से शामिल हुए।
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