पिपरमेंट की खेती: लागत, मौसम, पानी, सरकारी सहायता, फसल और फसल से होने वाले लाभ
पिपरमेंट की खेती: लागत, मौसम, पानी, सरकारी सहायता, फसल और फसल से होने वाले लाभ
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परिचय
पिपरमेंट की खेती: लागत, मौसम, पानी, सरकारी सहायता, फसल और फसल से होने वाले लाभ [News VMH-Sanjeev Chaturvedi] पिपरमेंट (Peppermint) एक महत्वपूर्ण औषधीय एवं सुगंधित पौधा है जो दुनिया भर में अपनी अनूठी खुशबू और औषधीय गुणों के कारण प्रसिद्ध है। भारत में पिपरमेंट की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, और मध्य प्रदेश में की जाती है। इस लेख में हम पिपरमेंट की खेती से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ जैसे लागत, मौसम, पानी की आवश्यकताएँ, सरकारी सहायता, फसल और फसल से होने वाले लाभ पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
पिपरमेंट की खेती की लागत
पिपरमेंट की खेती में प्रारंभिक लागत मुख्य रूप से बीज, खाद, सिंचाई, और श्रम पर निर्भर करती है। खेती की लागत निम्नलिखित भागों में विभाजित की जा सकती है:
1. बीज एवं रोपाई की लागत
पिपरमेंट की खेती के लिए बीज या कलम की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर भूमि के लिए लगभग 20-25 किलो बीज या 400-500 किलोग्राम कलम की आवश्यकता होती है। बीज की कीमत बाजार में 500-700 रुपये प्रति किलो हो सकती है।
2. खाद एवं उर्वरक की लागत
पिपरमेंट की अच्छी पैदावार के लिए उचित मात्रा में खाद और उर्वरक का उपयोग आवश्यक है। जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, कंपोस्ट, और केचुआ खाद का प्रयोग लाभकारी होता है। इसके अलावा, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश उर्वरक का भी उपयोग किया जाता है। एक हेक्टेयर खेत में खाद और उर्वरक की लागत लगभग 10,000-15,000 रुपये हो सकती है।
3. सिंचाई की लागत
पिपरमेंट की खेती में सिंचाई का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ड्रिप इरिगेशन प्रणाली का उपयोग करके पानी की बचत की जा सकती है और उत्पादन भी बढ़ाया जा सकता है। सिंचाई प्रणाली की स्थापना की लागत लगभग 20,000-30,000 रुपये हो सकती है।
4. श्रम एवं अन्य खर्च
खेती के दौरान श्रम, कीटनाशक, और अन्य संचालनात्मक खर्च भी होते हैं। श्रम की लागत क्षेत्र और मौसम के अनुसार भिन्न हो सकती है। कुल मिलाकर, एक हेक्टेयर पिपरमेंट की खेती की कुल लागत लगभग 60,000-80,000 रुपये हो सकती है।
मौसम और जलवायु
पिपरमेंट की अच्छी पैदावार के लिए ठंडे और शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। यह पौधा 15-30 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह बढ़ता है। इसके अलावा, पिपरमेंट की खेती के लिए निम्नलिखित मौसम संबंधी जानकारी महत्वपूर्ण है:
1. तापमान
पिपरमेंट की खेती के लिए 15-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है। अत्यधिक ठंड या गर्मी से पौधे की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
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2. वर्षा
पिपरमेंट की खेती के लिए मध्यम वर्षा (100-150 सेंटीमीटर) उपयुक्त होती है। अधिक वर्षा होने पर पौधे की जड़ें सड़ सकती हैं और कम वर्षा होने पर पौधे की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
3. मिट्टी
पिपरमेंट की खेती के लिए दोमट मिट्टी, काली मिट्टी, या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6-7 के बीच होना चाहिए।
पानी की आवश्यकताएँ
पिपरमेंट की खेती में पानी की सही मात्रा और सही समय पर सिंचाई महत्वपूर्ण है। पिपरमेंट की जड़ें नमी को बहुत अच्छे से अवशोषित करती हैं, इसलिए नियमित सिंचाई आवश्यक है। सिंचाई की निम्नलिखित आवश्यकताएँ होती हैं:
1. प्रारंभिक सिंचाई
बीज बोने के तुरंत बाद मिट्टी को नम रखना आवश्यक है ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो सकें। प्रारंभिक सिंचाई के लिए हल्की सिंचाई करना उचित होता है।
2. नियमित सिंचाई
पिपरमेंट की फसल को नियमित रूप से पानी की आवश्यकता होती है। हर 7-10 दिन में सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई की मात्रा और समय मौसम और मिट्टी के अनुसार बदल सकते हैं।
3. ड्रिप इरिगेशन
ड्रिप इरिगेशन प्रणाली का उपयोग करके पानी की बचत की जा सकती है और पौधे को नियमित रूप से नमी प्राप्त हो सकती है। यह प्रणाली पौधे की जड़ों को सीधे पानी पहुँचाती है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है।
सरकारी सहायता
भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें किसानों को पिपरमेंट की खेती के लिए विभिन्न प्रकार की सहायता प्रदान करती हैं। सरकारी सहायता के तहत निम्नलिखित योजनाएँ और सब्सिडी उपलब्ध हैं:
1. राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB)
राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इसके तहत पिपरमेंट की खेती के लिए भी सब्सिडी और अनुदान दिए जाते हैं।
2. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह सहायता पिपरमेंट की खेती करने वाले किसानों के लिए भी उपलब्ध है।
3. कृषि मशीनरी सब्सिडी
कृषि मशीनरी की खरीद पर भी सरकार द्वारा सब्सिडी प्रदान की जाती है। पिपरमेंट की खेती के लिए आवश्यक उपकरणों की खरीद पर यह सब्सिडी उपयोगी हो सकती है।
4. प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता
कृषि विभाग और विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा किसानों को पिपरमेंट की खेती के लिए प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है। इससे किसानों को उन्नत खेती तकनीकों और नवीनतम जानकारी प्राप्त होती है।
फसल
पिपरमेंट की फसल को मुख्यतः उसके पत्तों और तेल के लिए उगाया जाता है। इसकी फसल के निम्नलिखित चरण होते हैं:
1. रोपाई
पिपरमेंट की कलम या बीज की रोपाई फरवरी-मार्च के महीनों में की जाती है। पौधों की दूरी 45-60 सेमी रखी जाती है।
2. सिंचाई और खाद
सिंचाई और खाद का उचित मात्रा में उपयोग करते हुए पौधों की अच्छी देखभाल की जाती है। नियमित सिंचाई और समय-समय पर खाद देने से पौधे की वृद्धि होती है।
3. कटाई
पिपरमेंट की पहली कटाई 90-100 दिनों के बाद की जाती है। इसके बाद हर 60-70 दिनों में कटाई की जा सकती है। एक साल में पिपरमेंट की 3-4 कटाई संभव है।
4. तेल निष्कर्षण
पिपरमेंट के पत्तों से तेल निकालने के लिए डिस्टिलेशन प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। पत्तों को जलवाष्प डिस्टिलेशन के माध्यम से तेल निकाला जाता है, जो विभिन्न औषधीय और सुगंधित उत्पादों में उपयोग होता है।
फसल से होने वाले लाभ
पिपरमेंट की खेती से किसानों को कई प्रकार के लाभ होते हैं। इनमें मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:
1. आर्थिक लाभ
पिपरमेंट की खेती से किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ मिलता है। प्रति हेक्टेयर पिपरमेंट की खेती से सालाना 1.5-2 लाख रुपये तक की आय हो सकती है।
2. औषधीय लाभ
पिपरमेंट का तेल विभिन्न औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यह त्वचा, बाल, और पाचन तंत्र के लिए लाभकारी होता है। इसके अलावा, पिपरमेंट का उपयोग विभिन्न औषधीय उत्पादों में किया जाता है।
3. सुगंधित उत्पाद
पिपरमेंट का तेल विभिन्न सुगंधित उत्पादों जैसे साबुन, शैम्पू, क्रीम, और परफ्यूम में उपयोग किया जाता है। इससे किसानों को बाजार में अच्छा मूल्य मिलता है।
4. निर्यात
पिपरमेंट का तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी काफी मांग में है। इसे विभिन्न देशों में निर्यात किया जाता है, जिससे किसानों को विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
पिपरमेंट की खेती एक लाभकारी व्यवसाय है जो किसानों को अच्छी आमदनी के साथ-साथ औषधीय और सुगंधित उत्पादों की भी प्राप्ति कराता है। उचित देखभाल, सिंचाई, और खाद के प्रयोग से पिपरमेंट की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। सरकारी सहायता और नवीनतम खेती तकनीकों का उपयोग करके किसान इस खेती से अधिक लाभ कमा सकते हैं। पिपरमेंट की खेती न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करती है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में भी सहायक होती है।
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