ऐसे ही नहीं बन बैठा सरकारी इमारत का स्वामी, अब खड़े हो रहे हैं कई सवाल
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ऐसे ही नहीं बन बैठा सरकारी इमारत का स्वामी, अब खड़े हो रहे हैं कई सवाल
ऐसे ही नहीं बन बैठा सरकारी इमारत का स्वामी, अब खड़े हो रहे हैं कई सवाल [News VMH-Holipura] न्यूज़ विएमएच के द्वारा कल एक खबर प्रकाशित की गई थी, जिसमें बताया गया था कि, राधेश्याम नामक दबंग ने, होलीपुरा स्थित सरकारी स्कूल की इमारत पर कब्जा कर लिया है। वह करीब 20 वर्षों से इस इमारत पर कब्जा किए बैठा है। गांव के ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन को प्रार्थना पत्र देकर इस सरकारी इमारत को खाली कराने हेतु आवेदन किया, लेकिन सरकारी मुलाजिम इतनी जल्दी कहां जागते हैं।
सरकारी कर्मचारियों ने कैसे बनाए फर्जी दस्तावेज
इतनी वर्षों में दबंग राधेश्याम ने कूट रचित दस्तावेज भी तैयार करवा लिए। आपको बताते चलें कि यह कूट रचित दस्तावेज ऐसे ही तैयार नहीं हुए। इनको बनाने के लिए सरकारी मुलाजिमों ने भी राधेश्याम का साथ दिया। अतः किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य के लिए जितना राधेश्याम दोषी है, उतना ही वो मुलाजिम जिन्होंने राधेश्याम के अनैतिक कार्यो में साथ दिया।
सरकारी स्कूल का मालिक बन बैठा
अभी 14 फरवरी को, राधेश्याम के खिलाफ एक प्रार्थना पत्र, एसडीएम बाह के कार्यालय में प्रेषित किया गया है, जिसमें बताया गया है की राधेश्याम ने सरकारी स्कूल की इमारत में रहते हुए तोड़फोड़ कर इसके रिनोवेशन का कार्य चालू कर दिया है। जबकि यह इमारत स्कूल की है। राधेश्याम इस पर जबरन कब्जा कर बैठा है।
कूटरचित घरौनी कैसे बनी
प्रार्थना पत्र का संज्ञान लेते हुए, एसडीएम ने तहसील की टीम को सर्वे करने हेतु यहां पर भेजा। तहसील की टीम ने जब राधेश्याम से यह पूछा कि, वह किस हैसियत से इस इमारत में रह रहा है? तो उसने कूट रचित घरौनी तहसील से जांच करने आए कर्मचारियों को दिखाई। यहां सवाल यह उठते हैं कि बिना किसी जांच पड़ताल के, राधेश्याम को इस सरकारी इमारत की घरौनी बनाकर किस प्रकार दे दी गई।
गांव के दलाल हैं सक्रिय
कूट रचित दस्तावेज बनवाने में गांव के ही कुछ दलालों का हाथ रहा है, जिन्होंने पैसे लेकर अधिकारियों से सांठ गांठ कर, राधेश्याम को कूट रचित घरौनी बना कर दे दी। जबकि गांव के समस्त निवासी यह जानते हैं कि जिस इमारत में राधेश्याम रह रहा है, यह पुराना सरकारी स्कूल है। किसी समय यहां पर 40 बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे। अगर शिक्षा विभाग अपने दस्तावेज खंगालेगा तो यह प्रॉपर्टी शिक्षा विभाग की निकलेगी।
ऐसे ही नहीं बन बैठा सरकारी इमारत का स्वामी, यहाँ न तो शिक्षा विभाग ने कभी इसकी सुध ली, और ना ही प्रशासनिक अमले ने। जिससे एक व्यक्ति के मनोबल में इतनी वृद्धि हुई कि उसने इसके लिए हेर फेर किया 420 कर दस्तावेज बनवा लिए।
पटवारी ने ते फायदा नहीं पहुंचाया
ऐसे ही नहीं बन बैठा सरकारी इमारत का स्वामी, अब खड़े हो रहे हैं कई सवाल, इस प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को सजा दी जाए। जिन्होंने इस कार्य मे राधेश्याम का साथ दिया वो भी दोषी हैं, यह कार्य करने के लिए कोई कैसे राजी हो गया यह भी जांच का विषय है। तत्कालीन पटवारी जो राधेश्याम की जाति का था, उसने राधेश्याम को फायदा पहुंचाने के लिए कूट रचित दस्तावेज तैयार करने में मदद की हो ऐसा भी संभव है इसकी भी जांच होनी चाहिए।